गीत नया गाता हूँ
टूटे हुए तारों से फूटे वासन्ती स्वर,
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर,
झरे सब पीले पात,
कोयल की कुहुक रात,
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूँ.
गीत नया गाता हूँ.
टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी?
अन्तर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी.
हार नहीं मानूँगा,
रार नई ठानूँगा,
काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूँ
गीत नया गाता हूँ.
( अटल विहारी वाजपेयी )
“टूटे हुए तारों से फूटे वासन्ती स्वर,
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर,
झरे सब पीले पात,
कोयल की कुहुक रात…..”
और इससे अधिक हमें क्या चाहिए ? क्या यह स्वर्ग की कल्पना से कम है ? सामर्थ्य होते हुए भी हम, दूसरी आपाधापी में, प्रेम प्रचार में पिछड़ जाते हैं और स्वर्ग की रचना रचते रचते बिखर जाती है !
बहुत सुंदर !! आज की तुम्हारी पोस्ट दिल को छू लेने वाली है !!
-RDS