आस्मां की परी सी लगती हो
तुम मुझे जिंदगी सी लगती हो
फूल भी सजदे करेते हों जिसको
एसी दिलकश कली सी लगती हो
खुश्बु दिल की जमीं से आती है
तुम ईस पर चली सी लगती हो
सारी दुनिया बुरी लगे हमको
एक तुम ही भली से लगती हो
नींद से भारी पलकें हैं दोनों
रात सारी जगी सी लगती हो
तुमसे मिल के मैं झुम जाता हूं
तुम मुझे मयकशी सी लगती हो
( हर्ष ब्रह्मभट्ट )
saari duniya buri lage hamko
ik tum he bhali se lagati ho,,,,,
neend se bhari palke hei dono
tumse meel ke mei bhul jaata hu
tum muje maykashi si lagati ho…..
kya baat hai..HARSHJI aapki kalam ke jarur kuchh dam he.
સરસ રચના.ધન્યવાદ