कुछ भी नहीं

जिन्दगी आप की कुर्बत के सिवा कुछ भी नहीं

मौत क्या है ? गमे-फुर्कत के सिवा कुछ भी नहीं

.

वो हकीकत है उन्हें ख्वाब में भी देखते है

यानी हर ख्वाब हकीकत के सिवा कुछ भी नहीं

.

आप की याद है सहरा में गुलिस्ताँ की तरह

आप का जल्व: कयामत के सिवा कुछ भी नहीं

.

बेकरारी को करार आता है रफ्ता रफ्ता

गम भी ईंसान की आदत के सिवा कुछ भी नहीं

.

जख्म है ख्बाब है, यादें है परेशानी है

’नग्मा’ ये ईश्क मुसीबत के सिवा कुछ भी नहीं

.

( रुपा ‘नग्मा’ )

[ कुर्बत=सामीप्य, गमे-फुर्कत=जुदाई का दु:ख, सहरा=मरुभूमि, गुलिस्ताँ=पुष्पोद्यान, कयामत=प्रलय, रफ्ता रफ्ता=धीरे धीरे ]

Share this

2 replies on “कुछ भी नहीं”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.