पूछते चलो – साहिर लुधियानवी

अब आऐ या न आऐ ईधर पूछते चलो

क्या चाहती है उन की नजर पूछते चलो

.

हम से अगर है तर्क-ए-तअल्लुक तो क्या हुआ

यारो, कोई तो उनकी खबर पूछते चलो

.

जो खुद को कह रहे हैं कि मंजिल शनास हैं,

उनको भी क्या खबर है मगर पूछते चलो

.

किस मंजिल-ए-मुराद की जानिब रवा हैं हम

ऐ रह-रवान-ए-खाक-ए-बसर पूछते चलो

.

( साहिर लुधियानवी )

[ तर्क-ए-तअल्लुक = सम्ब न्ध टूटे हुए, शनास = जानने वाले, रवा = चलना, रह-रवान-ए-खाक-ए-बसर = रास्ते में पडे हुए ]

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2 replies on “पूछते चलो – साहिर लुधियानवी”

  1. तर्क-ए-तअल्लुक और आपसे? कभी मुमकिन ही नहीं तो इस बार में नहीं सोचते…ठीक है?

    वैसे साहिर जी ने काफी खूब फरमाया है…की…

    हम से अगर है तर्क-ए-तअल्लुक तो क्या हुआ
    यारों, कोई तो उनकी खबर पूछते चलो…

  2. तर्क-ए-तअल्लुक और आपसे? कभी मुमकिन ही नहीं तो इस बार में नहीं सोचते…ठीक है?

    वैसे साहिर जी ने काफी खूब फरमाया है…की…

    हम से अगर है तर्क-ए-तअल्लुक तो क्या हुआ
    यारों, कोई तो उनकी खबर पूछते चलो…

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