अब के खफा हुआ तो – निदा फाजली

अब के खफा हुआ तो है ईतना खफा भी हो

तू भी हो और तुझमें कोई दूसरा भी हो

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यूँ तो हर बीज की फितरत दरख्त है

खिलते हैं जिसमें फूल वो आबो-हवा भी हो

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आँखें न छीन मेरी नकामें बदलता चल

यूँ हो कि तू करीब भी हो और जुदा भी हो

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रिश्तों के रेगजार में हर सर पे धूप है

हर पाँव में सफर है मगर रास्ता भी हो

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दुनिया के कहने सुनने पे ईंसानियत न छोड

ईंसान है तो साथ में कोई खता भी हो

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( निदा फाजली )

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[ फितरत = प्रकृति, रेगजार = मरुस्थल ]

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5 replies on “अब के खफा हुआ तो – निदा फाजली”

  1. दुनियाके कहने सुननेपे ईन्सानीयत ना छॉड..बहोत ही अच्छी गझल नीदा फाज़लीकी..आप जरुर आये और हमारी बहेन नज़मा मरचंटके अशार नीचेकी लिन्कमे पढे..
    http://najmamerchant.wordpress.com

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