अंजाम नहीं होता – मीनाकुमारी

आगाज तो होता है अंजाम नहीं होता

जब मेरी कहानी में वह नाम नहीं होता

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जब जुल्फ की कालिख में गुम जाए कोई राही

बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं होता

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हंस-हंस के जवां दिल के हम क्यों न चुनें टुकडे

हर शख्स की किस्मत में ईनाम नहीं होता

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बहते हुए आंसू ने आंखों से कहा थम कर

जो मय से पिघल जाए वह जाम नहीं होता

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दिन डूबे हैं या डूबी बारात लिए कश्ती

साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता

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( मीनाकुमारी )

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[ आगाज = आरम्भ, अंजाम = अंत, मय = मदिरा ]

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2 replies on “अंजाम नहीं होता – मीनाकुमारी”

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