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मुझे अपनी आँखो पर विश्वास न हुआ
जब मैं ने देखा
कि मन्दिर के दालान में बैठे भक्त लोग
बडे ऊँचे स्वर में राम-धुन गा रहे हैं
जब कि उधर मन्दिर के पिछले दरवाजे से
भगवान उलटे पैरों भागे जा रहे हैं
चरण छू कर, काँपते हुए पूछा मैं ने,
भगवन ! आप का यह क्या हाल ?
तो उन्हों ने हाँफते-हाँफते कहा-
रोको मत मुझे,
यहाँ अधिक नहीं ठहर सकता अब मैं;
इन लोगों ने बिछा रखा है मेरे लिए पग-पग पर जाल
मैं दिग्भ्रमित सा बोला-
जाल कैसा ?
वे तो आप के नाम की रटन लगा रहे हैं
आप की मूरत पर ही वे अपना सर्वस्व चढा रहे हैं.
अव की बार वे झुँझला कर बोले-
हाँ, इस लिए ही तो
लोग उन से ईमानदारी-पूर्वक ठगे जा रहे हैं.
किन्तु मेरा अब निर्णय है
कि मैं उस नास्तिक के यहाँ भी रहना पसन्द करुंगा
जो अपने प्रति सच्चा है और शुद्ध है जिस का आचार
पर यहाँ मैं अब नहीं टिक सकता
जिन्होंने धर्म और ईश्वर के नाम पर
फैला रखा है इतना-इतना भ्रष्टाचार
सुनकर मैं अवाक रह गया
किन्तु फिर भी अपनी आँखों पर विश्वास न हुआ
और मैं ने ध्यान से देखा
कि मन्दिर के दालान में भक्त-लोग
बडे ऊँचे स्वर में राम-धुन गा रहे हैं
जब कि उधर मन्दिर के पिछले दरवाजे से
भगवान उलटे पैरों भागे जा रहे हैं
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( मुनि रुपचन्द्र )