जैसी है – निदा फाजली Feb15 ज़िन्दगी इंतजार जैसी है दूर तक रहगुजार जैसी है . चंद बेचेहरा आहटों के सिवा सारी बस्ती मज़ार जैसी है . रास्ते चल रहे हैं सदियों से कोई मंजिल गुबार जैसी है . कोई तन्हाई अब नहीं तन्हा हर खामोशी पुकार जैसी है . ज़िन्दगी रोज़ का हिसाब किताब कीमती शै उधार जैसी है . ( निदा फाजली ) [ शै = वस्तु ]
सुन्दर ग़ज़ल और अशआर है…