मैं अँधेरा : एक रहस्य – डॉ. गोपाल शर्मा ‘सहर’

.

हाँ, मैं अँधेरा हूँ. मुझे सदियों से कोसा जाता है. शास्त्रों ने मुझसे दूर भागने की बातें कही है. प्रभो से यही प्रार्थना की जाती है कि “हे प्रभो ! हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाओ.” मेरी ओर तो कोई देखना, आना ही नहीं चाहता है. मानो मैं तो यूँ ही अनचाहा, न जाने कहाँ से, कैसे आ टपका यहाँ. लावारिस ! कोई अपनाना ही नहीं चाहता है. पर मैं न लावारिस हूँ और न झूठ ही. मैं तो अनादिकाल हूँ. मैं न कभी जनमा और न कभी मरा ही. जब कुछ नहीं था तब भी मैं था और एक दिन जब कुछ नहीं रहेगा, तब भी मैं रहूँगा.

 .

ज्ञानी मुझे निराशा, दु:ख, कष्ट, अज्ञान का प्रतीक कहते हैं. मैं न किसी का रोड़ा, काँटा बना, न ही मैंने ज्ञानियों के ज्ञान में कोई बाधा डाली, यदि किसी को कुछ दिखाई नहीं देता है मेरी उपस्थिति में, तो इसमें मेरा क्या कसूर ! सूरज के उजाले में कौन सूरज को देख सकता है भर दुपहर में ! मैंने किसका क्या बिगाड़ा है कि हमेशा मुझसे पल्लू झटकने की बातें होती रही. लोग भूल जाते हैं कि अंधकार और उजाला एक ही सिक्के के  दो पहलू हैं. जहाँ दिन है, वहाँ रात है और सुबह है तो शाम भी है, और ज्ञान है, वहाँ अज्ञान भी जरुर है.

 .

जिस तरह अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा है, ठीक उसी तरह प्रकाश से अंधकार की ओर यात्रा है. उजाले में श्रम से थके-हारे लोगों को मैं ही अपनी गोद में सहलाकर, लोरी सुनाकर सुला देता हूँ और अगले दिन उजाले की दस्तक से फिर रोजी-रोटी कमाने में जुट जाते हैं. जीवन में जितनी श्रम की जरुरत है, उतनी विश्राम की भी. यूँ कहने को सब कोई कह ले अँधेरा निष्क्रिय बना देता है हमें. परन्तु मनुष्य जब श्रम से निष्क्रिय हो जाता है, तो उसे चैन की नींद सुलाकर मैं ही नई उर्जा भरता हूँ, ताकि वह फिर सक्रिय बने. उजाला सारी उर्जा खा जाता है लोगों को सक्रिय रखकर, और मैं निष्क्रिय हुए में नयी उर्जा क संचार कर सक्रिय करता हूँ उन्हे फिर. मनुष्य के अपने आप गाढ़ अंधकार में उतारने और डूबने का नाम ही निद्रा है और इस निद्रा में डूबे बिना मनुष्य कैसे जीवित रह सकता है. जो रोज़ निश्चिन्त रात को इस अंधकार में डूब जाते हैं, वे पृथ्वी पर सबसे ज्यादा सुखी हैं, हरेक प्राणी की यात्रा उजाले से अंधकार की तरफ होती है, जहाँ पहुँचकर वह परम सुख की अनुभूति करता है, जो इस अंधकार में डूबने के सुख से वंचित रह जाते हैं, वे दिमागी संतुलन तक खो देते हैं, फिर डॉक्टरों की लिखी गोलियाँ खाकर निद्रा के अंधकार की ओर यात्रा-प्रयाण करने की कोशिश करते हैं.

 .

हमेशा अँधेरे से डरना सिखाया जाता है. बच्चों को अँधेरे से, भगवान से डराया जाता है. फिर वे ज़िन्दगी भर इनसे डरते हैं. यहाँ तक कि बड़ों तक को अकेले में अँधेरे को पहने-ओढ़े झाड-झाड़ी दीख जाये तो पसीना और छक्के छूट जाते हैं.

 .

कुदरत का कसूर कहूँ कि दस्तूर ! मेरा रंग काल-कलूटा और स्वभाव से मैं एकदम शांत. उजाला रंग का धोला और स्वभाव का तेज-तर्रार. मुझे तो नाम ही कैसे दिये-अँधेरा, अंधकार. मानो मैं दृष्टिहीन हूँ. पर मैं जो देख सकता हूँ, वह तो उजाला तक नहीं देख सकता है और मेरी दृष्टि तक उजाले की आँखे पहुँचती ही नहीं. मेरी नज़र से सूरदास ने जो देखा वह तो उजाले की नज़र वाला कोई नहीं देख पाता.

 .

दार्शनिकों को मैं दिखायी ही नहीं दिया. मेरा अस्तित्व ही नहीं स्वीकारा. न मुझे सात, सोलह पदार्थों में स्वीकारा, न पाँच-पच्चीस तत्वों में. कहीं पर भी मेरा नाम-निशान नहीं. पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, काल, दिशा, आत्मा और मन की सत्ता स्वीकार कर उनके लक्षण किये गये. किसी ने सवाल उठाया भी कि बेचारे अंधकार को भी दसवाँ द्रव्य मानना चाहिये. उसका भी रंग-रुप है, उसमें गति भी दिखायी देती है तो यह कहकर इस वात को ही उड़ा दिया कि वह तो प्रकाश का  अभाव मात्र है. उसका कोई रंग-रुप नहीं. रंग-रुप को देखने के लिये प्रकाश की जरुरत पड़ती है और अंधकार को देखने के लिये जैसे ही प्रकाश को पास ले जाते हैं तो वह गायब हो जाता है. उसमें जो गति दिखायी देती है वह तो प्रकाश का अपसरण है.

 .

मुझे समझ में नहीं आता है कि यदि मैं हूँ ही नहीं तो मुझे यह नाम क्यों दिया गया ! यह तो बड़ी अजीब बात है कि यदि मैं हूँ नहीं तो शास्त्रों में लोग क्यों गिड़गिड़ाते है कि ‘हे प्रभो ! हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाओ.’ और यह कहवत यूँ ही नहीं गढ़ी गयी होगी कि खुदा के घर देर है, पर अंधेर नहीं. पर जहाँ अँधेरा है, वहाँ सवेरा भी है, और जहाँ सवेरा है, वहाँ फिर से अँधेरा होने ही वाला है. अँधेरा तो बसेरा है, विश्राम है. उजाले का थका-हारा मुसाफिर अँधेरे के गिरते-घेरते यहाँ-वहाँ कहीं भी बसेरा ढूंढ़ ही लेता है, रैन-बसेरा.

 .

मुझे हँसी आती है ज्ञानियों के ज्ञान पर कि जो है ही नहीं, उसे आकाश नाम दे दिया. उसे शब्द गुण वाला कहा गया है और तो और जिसे देखा न जाना उस ‘आत्मा’ की सत्ता स्वीकर कर ली. जीवात्मा और परमात्मा भेद और लक्षण भी कर दिया और कुछ नहीं तो मुझे भी काल-दिशा की तरह व्यावहारिक ज्ञान के लिये ही स्वीकार कर लिया होता तो उनका क्या बिगड़-चला जाता.

 .

सब जगह उजाले का बोलबाला है. उजाले की पूजा-अर्चना. कोई माने या न माने पर मेरी भी सत्ता तो है. मेरा भी साम्राज्य है, जिसकी वजह से क्या से क्या हो जाता है. रस्सी में सर्प, पेड़-पौधों या किसी और की आकृतियों में भूत-प्रेत तक दिखायी  देते हैं और लोग भाग खड़े होते हैं. अगर मैं होता ही नहीं तो उन्हें जो है, वो वैसा ही दिखायी देता. सिर्फ मैं ही नहीं, भ्रम-अज्ञान तो उजाला भी पैदा करता है कि तपती दुपहर में नदी-समुद्र के किनारे सीप में चाँदी का ज्ञान हो जाता है. राह में पड़ी पीतल आदि धातु की वस्तुएँ सोने की दिखायी पड़ती है, और उन्हें हाथ में उठा तक लेते है और इतना ही नहीं, कोई देख न ले, इस डर के मारे जेब में रख लेते है और फिर अकेले में देखते हैं कि यह असली सोने-चाँदी की है या झूठी-नकली ताँबे-पीतल की.

 .

हाँ, मैं हूँ, सब कहीं जगहों पर हूँ. जब उजाला इस पार है, तो मैं उस पार हूँ और जब उजाला उस पार है तो मैं इस पार हूँ. दीये के नीचे छुपकर मैं ही बैठा हूँ. यह कहावत यूँ ही नहीं बनी होगे कि ‘दीया तले अँधेरा’. इसमें बुरा क्या है. दीये के तले उजाला कर दो, अँधेरा उपर हो जायेगा. किताब-कॉपी के हाशिये पर, घरों-मकानों के कोनों में यहाँ-वहाँ, जहाँ, कहीं भी जितनी जगह मिल जाये छुपकर बैठ जाता हूँ, खजूर, नारियल के ऊँचे पेड़ो पर चढ़कर बैठ जाता हूँ. मैं कोई चोर भी नहीं हूँ. मेरी नियति ही है कि मैं रहस्य हूँ. ठीक आत्मा-परमात्मा की तरह. तुम रोशनी को मुठ्ठी में कैद कर सकते हो, मुझे नहीं. मैं तो अपनी मर्ज़ी का मालिक.

 .

( डॉ. गोपाल शर्मा ‘सहर’)

Share this

12 replies on “मैं अँधेरा : एक रहस्य – डॉ. गोपाल शर्मा ‘सहर’”

  1. બઢિયા ! અંધેરે કી તરહા ‘મૌત’ કા ભી યહી હાલ હૈ. જિસે ના કિસીને જાના, ના કોઈ ઉસકે બાદ આ કર ઉસકે બારે મેં હમે બતા સકા ઉસકે ઇયે કિતના ડર? કિતની કહાનિયાં ? ઓર ઉપર સે યે ભી કહા જાતા હૈ કે જીદંગી કી અભાવ યાને મૌત !

    વૈસે ‘રજની’કો તો અંધેરે સે લગાવ હોગા હી ના ? 🙂

  2. બઢિયા ! અંધેરે કી તરહા ‘મૌત’ કા ભી યહી હાલ હૈ. જિસે ના કિસીને જાના, ના કોઈ ઉસકે બાદ આ કર ઉસકે બારે મેં હમે બતા સકા ઉસકે ઇયે કિતના ડર? કિતની કહાનિયાં ? ઓર ઉપર સે યે ભી કહા જાતા હૈ કે જીદંગી કી અભાવ યાને મૌત !

    વૈસે ‘રજની’કો તો અંધેરે સે લગાવ હોગા હી ના ? 🙂

  3. Very well written.Im really proud of you.
    Keep up your good work to enlighten everybody.God bless you.

  4. Very well written.Im really proud of you.
    Keep up your good work to enlighten everybody.God bless you.

  5. હિનાબેન,

    ખૂબજ સુંદર અંધેરા ની વાત ‘સહર’ને માણવાની મજા આવી., માર્મિક વાતન ને ખૂબજ સુંદરભાવ સાથે રજૂ કરેલ છે. જીવનમાં આ અંધેરા નો શું અર્થ સમજવો ? અતિ સુંદર વાત … શેર કરવા બદલ આભાર !

  6. હિનાબેન,

    ખૂબજ સુંદર અંધેરા ની વાત ‘સહર’ને માણવાની મજા આવી., માર્મિક વાતન ને ખૂબજ સુંદરભાવ સાથે રજૂ કરેલ છે. જીવનમાં આ અંધેરા નો શું અર્થ સમજવો ? અતિ સુંદર વાત … શેર કરવા બદલ આભાર !

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.