गीत ठुकराया हुआ, उच्छवास-क्रंदन,
मधु मलय होता उपेक्षित हो प्रभंजन,
बाँध दो तूफान को मुसकान में तुम;
बाँध दो बिखरे सुरों को गान में तुम.
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कल्पनाएँ आज पगलाई हुई हैं,
भावनाएँ आज भरमाई हुई हैं,
बाँध दो उनको करुण आह्वान में तुम;
बाँध दो बिखरे सुरों को गान में तुम.
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व्यर्थ कोई भाग जीवन का नहीं हैं,
व्यर्थ कोई राग जीवन का नहीं हैं,
बाँध दो सबको सुरीली तान में तुम;
बाँध दो बिखरे सुरों को गान में तुम.
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मैं कलह को प्रीति सीखलाने चला था,
प्रीति ने मेरे हृदय को छला था,
बाँध दो आशा पुन: मन-प्राण में तुम;
बाँध दो बिखरे सुरों को गान में तुम.
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( हरिवंशराय बच्चन )