મા એટલે…(અગિયારમી માસિક શ્રદ્ધાંજલિ)

Mummy-1
(23/08/1938 – 25/12/2012)

* * *

VID-20130601-WA0007

* * *

Maa

* * *

जाड़े की जब धूप सुनहरी
अंगना में छा जाती है
बगिया की माटी में तुलसी
जब औंचक उग आती है
माँ की याद दिलाती है

हो अज़ान या गूँज शंख की
जब मुझसे टकराती है
पाँवों तले पड़ी पुस्तक की
चीख हृदय में आती है
माँ की याद दिलाती है

कटे पेड़ पर भी हरियाली
जब उगने को आती है
कटी डाल भी जब कातिल का
चूल्हा रोज़ जलाती है
माँ की याद दिलाती है

अदहन रखती कोई औरत
नन्हों से घिर जाती है
अपनी थाली देकर जब भी
उनकी भूख मिटाती है
माँ की याद दिलाती है

सुख में चाहे याद न हो, पर
चोट कोई जब आती है
सूरज के जाते ही कोई
दीपशिखा जल जाती है
माँ की याद दिलाती है

( मंजु रानी सिंह )

* * *

बेसन की सोंधी रोटी

 

बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका बासन
चिमटा फुँकनी जैसी माँ

 

बान की खूर्रीं खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी
थकी दुपहरी जैसी माँ

 

चिड़ियों की चहकार में गूँजे
राधा-मोहन अली-अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुंडी जैसी माँ

 

बीवी बेटी बहन पड़ोसन
थोड़ी थोड़ी सी सब में
दिनभर एक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी माँ

 

बाँट के अपना चेहरा माथा
आँखें जाने कहाँ गईं
फटे पुराने इक अलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ

 

( निदा फ़ाज़ली )

* * *

चीटियाँ अंडे उठा कर जा रही हैं
और चिड़ियाँ नीड़ को चारा दबाए
थान पर बछड़ा रंभाने लग गया है
टकटकी सूने विजन पथ पर लगाए

थाम आँचल थका बालक रो उठा है
है खड़ी माँ शीश का गट्ठर गिराए
बाँह दो चुमकारती-सी बढ़ रही हैं
साँझ से कह दो बुझे दीपक जलाए

शोर डैनों में छिपाने के लिए अब
शोर माँ की गोद जाने के लिए अब
शोर घर-घर नींद रानी के लिए अब
शोर परियों की कहानी के लिए अब

एक मैं ही हूँ कि मेरी साँझ चुप है
एक मेरे दीप में ही बल नहीं है
एक मेरी खाट का विस्तार नभ-सा
क्यों कि मेरे शीश पर आँचल नहीं है

( सर्वेश्वर दयाल सक्सेना )

Share this

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.