अच्छी लगी – हनीफ साहिल

रास्तों में गुमरही अच्छी लगी

ये तलाशे-बेखुदी अच्छी लगी

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मैंने देखा है उसे बस एक बार

एक लडकी अजनबी अच्छी लगी

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सारा दिन तो शोर रहता है यहां

शाम होते ही गली अच्छी लगी

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गम से गेहरा कोई भी दुश्मन नहीं

गम से अपनी दोस्ती अच्छी लगी

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गमकदे में तीरगी जब बढ गई

खूने-दिलकी रौशनी अच्छी लगी

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एक बस तेरी कमी खलती रही

वरना हमको जिंदगी अच्छी लगी

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शायरी से क्या मिला तुमको हनीफ

हां मगर ये सरखुशी अच्छी लगी

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( हनीफ साहिल )

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