गजल कहनी पडेगी झुग्गियों पर कारखानों पर
ये फन वरना मिलेगा जल्द रद्दी की दुकानों पर
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कलन कहता रहा संभावना सब पर बराबर है,
हमेशा बिजलियाँ गिरती रहीं कच्चे मकानों पर
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लडाकू जेट उडाये खूब हमने रात दिन लेकिन
कभी पहरा लगा पाये न गिद्धों की उडानों पर
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सभी का हक है जंगल पे कहा खरगोश ने जबसे
तभी से शेर, चीते, लोमडी बैठे मचानों पर
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कहा सबने बनेगा एक दिन ये देश नंबर वन
नतीजा देखकर मुझको हँसी आई रुझानों पर
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( ‘सज्जन’ धर्मेन्द्र )