याद के बादल – आशा पाण्डेय ओझा

फिर घिर आये

याद के बादल

फिर हरिया उठा

पीड का पलाश

फिर झरी

मन की छत पर

गीली-चाँदनी ख्वाबों की

हल्की-हल्की बयार ने

फिर खोली आज

चाहत के दिनों से

जोडी हुई

सुरभिमय अहसास की

वो रंग-बिरंगी शीशियाँ

जो दबा रखी है

मन की तहों के नीचे

सबसे छुपकर मैंने

और शायद

तुमने भी

 .

( आशा पाण्डेय ओझा )

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