मेरी आवश्यकता – बृजेश नीरज Feb14 अब तक संजोए था अपना आकाश और एक धरती . लेकिन जाने कहाँ से तुम आ गए जीवन में तोडकर सारे मिथक औए वे झरोखे बंद हो गए जहाँ से देखता था आकाश टूट गए वो पैमाने जिनसे नापता था धरती . तुम्हारे प्रेम में कुछ और विस्तार पा गया मेरा आकाश तुम्हारे स्पर्श ने दे दी असीमता मेरी धरा को . तुम्हारा आना एक इत्तेफाक हो सकता है लेकिन तुम्हारा होना अब मेरी आवश्यकता है . ( बृजेश नीरज )