दो कविता-चिनु मोदी

(१)
पुराना सा हो गया है
यह मकान-
अब पहेले सी शान नहीं-
बीच बीच में
बत्तियां गुल हो जाती है
टूटी खिडकीयों से
बारिश अंदर आ जाती है
परछांईसे भी दीवार
बैठ जाने का डर लगता है
यह मकान दुरस्त नहीं हो सकता,
मालिक !
ईसे जमीनदोस्त करने का हुकम दो
वर्ना यह अपनेआप
कभी भी बैठ जायेगा
और मैं
निंद निंद में
दब जाउंगा !

(२)
सांस में सन्नाटा सा
महेसूस किया है ?
बारुद के ढेर पर बैठे
परींदो को
गाता सूना है ?
कभी ईधर
कभी उधर
आवारा हवा को देख कर
तुम याद आती हो
तो
सांस फूलती है
बारुद फटता है
और
परींदा-

( चिनु मोदी )

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