आज वो घर, वो गली या वो मुहल्ला क्या है !
तु नहीं है तो तेरे शहेर में रख्खा क्या है ?
मैं संवारुंगा किसी रोज यकीनन तुजको,
जिन्दगी, तूने मेरे बारे में सोचा क्या है ?
गौर से सुनना मुखातिब को मेरी आदत है,
आंख चहेरे को भी पढ लेती है लिख्खा क्या है ?
होशमंदी का सितम है ये जूनुं पर वर्ना,
‘एक दीवाने का जंजीर से रिश्ता क्या है !’
आदमी है तो कई एब भी होंगे उस में,
देखना ये है कि, उस शख्स में अच्छा क्या है !
छू के देखा ही नहीं फूल की सांसो को कभी,
कैसे बतलाऐं कि, खुश्बू का सरापा क्या है !
ऐ हवा लौट भी जा, कुछ भी नहीं शाखों पर,
पेड को जड से उखाडेगी, ईरादा क्या है ?
हमने सोचा है कि हम कुछ भी नहीं सोचेंगे !
अब बता भी दो खलील आपने सोचा क्या है ?
( खलील धनतेजवी )