यूं भी कब नींद से नजदीक भी होने देती,
तु न होता तो तेरी याद न सोने देती
राह में मेरी हर इक मोड पे इक दरिया है
कोई तो होती नदी, होंठ भीगोने देती
रात बच्चे की तरह दिल ने परेशान किया,
नींद आ जाती तो ख्वाबों के खिलोने देती
मछलियां घास पर जीने का इरादा करती
ओस अगर कतराभी दरिया में समोने देती
जिस को दुखदर्द में हसने को कहा जाता है,
काश दिनिया उसे जी खोल के रोने देती
घर पे आते ही मुझे नींद सुलाने आई,
कम से कम, वो मुझे मूंह हाथ तो धोने देती
जिन्दगी को खलील इतनी भी तो फुरसत कब भी,
वर्ना कुछ वक्त यूं ही मुझको न खोने देती
( खलील धनतेजवी )