एक खुदाई से
एक दीवार पर ये लिखा मिला
मैं एक कविता अकेली खडी
समय को कह रही हूं
कि अपने वजूद से मैं अपने आपको
जीने के लिए
एक जिन्दगी का
इन्तजार कर रही हूं –
सदियों से…
लिखने वाला तो मुझे लिख कर
भूल ही गया है
कि उसे मुझे जीना भी है
शायद ये उस के वजूद में ही ना हो
ये लेखन अब बहुत मद्धम
हो चूका है
पर कविता का इन्तजार और उसकी हसरत
वैसी की वैसी है –
अब भी गहरी की गहरी…
( ईमरोझ )