कल रात सपने में
एक औरत देखी
जिसे मैंने पहले कभी नहीं देखा था
पर मिलते ही लगा
कि ईस बोलते नयन-नक्श वाली औरत को
कहीं देखा भी हुआ है
हो न हो यह वही है
जो मेरी कल्पनाओं के बाग में
अक्सर आ कर
फूलों से खेलती दिखती रही
जहां मिले थे
वह जगह बहुत नई थी-
मेरे लिए
पर बहुत हरी भरी
फूलों से टहलते हुए
पता ही नहीं लगा
कब उसका घर आ गया
उसका घर भी
बोलते नयन-नक्श वाली की तरह
बोल रहा था-
गिनती की सिर्फ जरुरी चीजें
घर की सजावट भी थीं
और जरुरत भी
फालतू चीजें घर में कहीं भी
न होने के कारण
घर खुला-खुला लग रहा था-
खूबसूरत, दिलचस्प और सादा
अपनी तरफ का एक ही
बिल्कुल अपनी घर वाली जैसा
जहां सादगी खूबसूरती को बढा रही थी
और खूबसूरती सादगी को
अमीरी फकीरी दोनों उसके स्वभाव में दिख रही हैं
वह कविता लिखती है
लिखकर हवा के हवाले कर देती है
रात बीत गई है
पर सपना नहीं बीता
वह अभी भी बोलते नतन-नक्श वाली के साथ
कहीं चल रहा है…
( ईमरोज )