बोलो कब प्रतिकार करोगे
पूछ रहा अस्तित्व तुम्हारा
कब तक ऐसे वार सहोगे
बोलो कब प्रतिकार करोगे
अग्नि वृद्व होती जाती है
यौवन निर्झर छूट रहा है
प्रत्यंचा भर्रायी सी है
धनुष तुम्हारा टूट रहा है
कब तुम सच स्वीकार करोगे
बोलो कब प्रतिकार करोगे
कंपन है वीणा के स्वर में
याचक सारे छन्द हो रहे
रीढ गर्व खोती जाती है
निर्णय सारे मंद हो रहे
क्या अब हाहाकार करोगे
बोलो कब प्रतिकार करोगे
निमिर लिए रथ निकल पडा है
संसारी आक्रोश हो रहा
झूकता है संकल्प तुम्हारा
श्वेत धवल वह रोष खो रहा
कैसे सागर पार करोगे
बोलो कब प्रतिकार करोगे
कब तक रक्त मौन बैठेगा
सत्य कलश छलकाना होगा
स्वप्न बीज भी सुप्त हो रहा
धरा स्नान करना होगा
किस दिन तुम संहार करोगे
बोलो कब प्रतिकार करोगे
बोलो कब प्रतिकार करोगे
( प्रसून जोशी )