(१)
माँ
तुम्हारा यों जाना
घनी ठंडी छांह का चिलकती धूप में बदल जाना
यात्राएँ जो शुरु की थीं
कहाँ हुई अभी पूरी
कथाएं जो कह रही थीं रह गई सब अधूरी
अलग-अलग दिशाओं में अब हमारी यात्राएँ
थके पाँव मांगते तुम्हारी शुभकामनाएँ
हम तो लुटे राहगीर गठरी में शेष दाम
तुम्हारी शुभकामनाएँ हमारे सादर प्रणाम
यादों में भीगे हुए नेह भरे मीठे पल
रामायण के पन्नो में दबे हुए तुलसीदल
घट फूटा माटी का अंजुरी में गंगाजल
माँ तुम्हारा यों जाना.
( अज्ञात )
(२)
बहुत याद आती है…
मां
तुम्हारी बहुत याद आती है
जब
दोपहर को
आग उगलते
सूरज के सामने
आ जाता है
कोई
बादल का टुकडा
मां
तुम्हारी बहुत याद आती है
जब
गर्मी के मौसम के बाद
पहली बारिश के साथ
माटी की
सोंधी महक लिए
ठंडी हवा
तपते बदन को सहलाती है
मां
तुम्हारी बहुत याद आती है
जब
देखता हूं
चूजे के मुंह में
दाना डालते हुए
किसी चिडिया को
तब
बहुत याद आती है तुम्हारी…
मां
तुम्हारी बहुत याद आती है
जब
रात की तन्हाई में
कोई सदाबहार गीत
देने लगता है थपकियां
मुंदने लगती है आंखे.
( डो. अनिल कुमार जैन )
(३)
मां तो आखिर ठहरी मां
चार दीवार-ईक देहरी मां,
ईक उलझी हुई पहली मां.
सारे रिश्ते उस पर रखे,
क्या-क्या ढोए अकेली मां.
कटी-फटी अधूरी रेखाएं,
काली-सी हथेली मां.
सबसे सुंदर सबसे अच्छी,
सब कहते है मेरी मां.
वो जाने महफूज है कितनी,
घर की तो है प्रहरी मां.
पल में आंसू आ जाते है,
लेकिन बहुत है गहरी मां.
सिर्फ फैसले सुनती है,
महज ईक कचहरी मां.
चल अपने काम बहुत है,
मां तो आखिर ठहरी मां.
( डो. अनिल कुमार जैन )
માતા સાથે એક જ પ્રાસ મળે છે શાતા.તે આપણામાં આત્મસ્થ બની જાય છે…જેમણે આવું મહામૂલું જીવન આપ્યું એ મા ને વંદન.