बस नाम रहेगा शंकर का
युग आएंगे, युग जाएंगे
नृप चढ़ेंगे और गिर जाएंगे
शत-कोटि सृष्टियां जन्मेंगी
शत-कोटि सभ्यता पनपेंगी
क्षय होगा हर इक विनिर्माण
फिर बसेगा हर खंडहर, वीरान
टूटेगा सत्व भू-अंबर का
बस नाम रहेगा शंकर का
जब ना पुर, ना नूतन होगा
ना शेष सृजन, विघटन होगा
ना क्षय होगा जब, ना विकास
ना धरा, अंतरिक्ष या अकाश
ना शेष कोई अवशेष कोई
ना असुर, मनुज, देवेश कोई
नाचेगा अंत अविनश्वर का
बस नाम रहेगा शंकर का
फिर पनपेंगे कंकड़-किरीट
नव कुसुम, शूल, नव काय, कीट
नव मोह, शोक, आनंद, भय
नव पाप, पुण्य, पीयूष, पय
नव रचेंगे सब सन्दर्भ,अर्थ
बदलेंगे सुघड, बदलेंगे व्यर्थ
बदलेगा नाद स्वर-अक्षर का
बस नाम रहेगा शंकर का
तुम रहो देखने या ना रहो
बस नाम रहेगा शंकर का
( अज्ञात )