[1]
माँ की अलमारी और वित्तमंत्री जी
माँ की अलमारी में
कुछ सुपारियाँ थी जो उन्हें मिलती थी
पीहर से विदाई के समय शुभाषीश के रूप में
कुछ मौली के गट्टे थे जो न जाने किन माँगलिक प्रसंगों के लिए लाए गए थे और बचे रह गए थे
आग़ामी माँगलिक प्रसंगों के लिए
कुछ पुराने सिक्के थे
जिन्हें संभाले वह बेख़बर थी उनके प्रचलन से बाहर हो जाने के तथ्य से
जैसे प्रचलन से बाहर हो जाती हैं
कुछ नैतिकताएँ, आस्थाएँ और भरोसे
कुछ नोट भी थे
जिन पर लगी होती थे कुमकुम की टीकी
कुछ रसीदें थी जो अस्ल में मियादी जमा रसीदें थी
कुछ इंदिरा विकास पत्र थे
कुछ किसान विकास पत्र और कुछ नेशनल सेविंग सर्टिफ़िकेट
जिन्हें देखते मैं उदास हो जाता हूँ
क्योंकि इंदिरा बची नहीं है
किसानों ने आत्महत्याएँ शुरू कर दी हैं
और नेशन को कोई सेव नहीं कर रहा है
एफडीआर या मियादी रसीदें भी
अब कम घरों में दिखती हैं
तीन, पाँच या दस साल की गिनती
प्रधानमंत्री के भाषणों के सिवा अब किसी में नहीं होती
शादियाँ तक इतनी नहीं चलती
तीन महीने पहले अपने मेहदी भरे हाथों की तस्वीर फ़ेसबुक पर डालने वाली लड़की
रातोंरात अपना स्टेटस बदल कर सिंगल कर देती है
रिश्ते अचानक अनफ़्रेंड हो जाते हैं
ख़ूबियों से ज़्यादा ख़ामियाँ शेयर होती हैं
पुराने दिनों से लोग तेज़ी से लोगआउट कर जाते हैं
फेक आईडी के इस ज़माने में माँ की पुरानी मियादी रसीदें
बच्चे, बचत, भरोसा और वक़्त पर काम आने लायक धन के बहाने
जो रिश्ते की अनंत उपस्थिति का दर्शन थी
अब कितनी बचकानी हो गई हैं
कि माँ की मियादी रसीदों के मज़बूत प्लास्टिक के कवर को
नेट बैंकिंग करने वाली मेरी बेटी हैरत से देखती है
गोया ये भी कभी थे
गोया माँ भी कभी थी
कितना भयावह है यह
कि माँ और उसके साथ के अपने दिन
हम किसी चश्मदीद की तरह बच्चों को बताते हैं
और हमें संदेह के साथ सुना जाता है
वित्तमंत्री जी, भाड़ में जाए जीडीपी और डालर के मुक़ाबले हमारी हैसियत
बस बच्चों के सिलेबस में इतना डलवा दीजिए
कि कभी इंदिरा विकास पत्र, किसान विकास पत्र, नेशनल सेविंग सर्टिफ़िकेट भी हुआ करते थे
और मियादी जमा की रसीदें
प्लास्टिक के जोड़े में होती थी!
(2)
माँ के बिना पिता की एक शाम
किसी एक रंग की कमी
या बिना झूलों के मेले की-सी स्थिति है यहाँ माँ
इस समय, जबकि दूज के इस एक ही चाँद को देखते
तुम हज़ारों मील दूर हो
गोया तुम माँ नहीं, चाँद हो घर की परात में हिलती, दिखती, हुड़काती
पिता अगर कविता लिखते तो ऐसी ही कुछ:
तुम्हारे बिना आधी है
रोटी की हंसी
नमक की मुस्कान
दरवाजों की प्रतीक्षा
सब-कुछ आधा है
मसलन चाँद, रात, सपने
सिरहाने का तकिया
पीठ की खाज
दाढ़ का दर्द
आज की कमाई
मुझे नहीं पता
तुम्हारे होने से
ज़िन्दगी की रस्सी पर नट की तरह नाचते पिता
तुम्हारा नहीं होना किसे कहते हैं
रात से, परींडे से, या तुम्हारी तम्बाकू की ख़ाली डिब्बी से
तुम्हारा वह नाम लेते हुए
जो मैंने कभी नहीं सुना
तुम्हें उस रूप में याद करते हुए
जब तुम पल्लू से वहीदा रहमान और हंसी से मधुबाला लगती थीं
और पिता, दादी से छिपा कर चमेली का गज़रा
आधी रात तुम्हारे बालों में रोपते थे
और थोड़े समय के लिए चाँद गुम हो जाता था
माँ; चौतरी जिस पर तुम बैठती हो
उदास है
घर के बुलावे पर भगवान् भी चले आते हैं
चली आओ तुम
नहीं तो पिता की डायरी में एक मौसम कम हो जाएगा
( विनोद विट्ठल )