दिलों की साँकलें और ज़हन की ये कुंडियाँ खोलो
बड़ी भारी घुटन है घर की सारी खिड़कियाँ खोलो
कसी मुट्ठी को लेकर आये हो, गुस्से में हो शायद
मिलाना है जो हमसे हाथ तो ये मुट्ठियाँ खोलो
नचाने को हमें जो उँगलियों में बाँध रक्खी हैं
न कठपुतली बनेंगे हम, सुनो, ये डोरियाँ खोलो
तुम्हारे घर की रौनक ने जो बाँधी हैं अँगोछे में
चलो, बैठो, पसीना पोंछो, और ये रोटियाँ खोलो
तुम्हारे दोस्त ही बैठे हैं हाथों में नमक लेकर
किसी से कह न देना घाव की ये पट्टियाँ खोलो
तुम्हारे हर तरफ़ थी आग और तुम फूस के घर थे
तो फिर किसने कहा अंधे कुओं की आँधियाँ खोलो
किसी भी ज़ुल्म के आगे रहोगे मौन यूँ कब तक
ज़ुबाँ जो बाँध रक्खी है उसे अब तो मियाँ, खोलो
तुम्हारे ही सरों पर गर ये बारिश में रहीं तो क्या
मज़ा तो तब है जब औरों की ख़ातिर छतरियाँ खोलो
सुनो, ये खुदकशी भी बुज़दिली है, खुद को समझाकर
तुम अपने हाथ से अपने गले की रस्सियां खोलो
अजब उलझन में हूँ उसने लिफ़ाफ़े पर लिखा है ये
कसम है ऐ कुँअर, जो तुम ये मेरी चिट्ठियाँ खोलो
( कुँअर बेचैन )