बिसरी बातें-उमा त्रिलोक Jul17 इस घर की दीवारों में अब दरारें हैं खिड़कियों दरवाजों की रंगो रौनक उखड़ी सी है वक्त की गुसैली नज़र पड़ी है इन पर जो लगाई थी तस्वीरें कील हिलने से अब गिरी गिरी सी लगती हैं तल्ख हवाओं ने अपने निशान छोड़े हैं फर्श भी उखड़ा है, क्या करोगे पूछ के कि कैसे टूटा मगर मैं खुश हूं कि अब भी सूरज की किरणे बेखोफ़ बिछती है मेरे आंगन में,और फूलों की महक भी आती जाती हैं मगर गर्दिशे बारिश में छत का कुछ हिस्सा दब गया है और पिछवाड़े में पानी भरा है फिर भी जब तुम आओगे तो अधखुली किताबों से सुनना कहानी, और चंद ग़ज़लें सुनना साज़ो की ज़ुबानी माना कि सब साज़ो सामान बिखरा पड़ा है फिर भी बैठ सकते हैं हम बगीचे के किसी कोने में और बिना बोले ही कर सकते हैं कुछ बिसरी बातें . ( उमा त्रिलोक )