वर्षा ऋतु को समर्पित-उमा त्रिलोक Aug16 वर्षा ऋतु को समर्पित संदली शाम सूरज की लाली जब सांवरी ज़रा भयी घुमड़ घुमड़ बादल ने टप टप बूंद बरसाई छप छप छप छप पानी बरसा धरती तब बौराई आंख मूंद ली पत्तों ने, तब टहनी, पूछ मुझे सकुचाई आसमान की छत के नीचे ” बैठी तू क्यों अकेली “ मैंने कहा, ” नहीं मैं हूं कहां अकेली ? देख नहीं पाई, संग संग हैं हम दोनों बाज रही स्वर लहरी बूंदों ने थाप लगाई नाच रहे हैं हम दोनों हम ने है रास रचाई वह है मुझ में मैं हूं उस में रम गए इक दूजे में सच मानो, प्रकृति ने यह संदली शाम हमरे लिए सजाई हमरे लिए सजाई “ . ( उमा त्रिलोक )