वह-उमा त्रिलोक Aug20 वह ढूंडा है मैंने उसे अपने आज में, अपने कल में रास्तों में, घरों में पगडंडियों पर चलते में, रुकते में वृक्ष पुंजों में पतझड़ में, वसंत में नदियों में, झरनों में सुनसान में, होहुल्लड़ में उत्सव में, मातम में हरियाली में, सूखे में हंसी में, उदासी में कहानी में, कविता में और भी यहां वहां ढूंडा है उसे जिसे मैं जानती नहीं लेकिन अगर ढूंढ लेती तो ज़रूर पहचान लेती मगर कहीं ऐसा तो नहीं कि वह है ही नहीं और बस ढूंडना मात्र ही एक सत्य है . ( उमा त्रिलोक )