सड़क-उमा त्रिलोक Sep6 तुम जब साथ चलती हो ; तो सहेली सी लगती हो मिलाती हो कितनो से दिखते हैं कई चेहरे हंसते, मुस्काते थोड़े उखड़े, थोड़े बिखरे उतेजित, तो कोई उदास भावनाओं के दिखते हैं कई रूप, कई रंग चलती है कभी पुरवाई कभी आंधी तो कभी आती है बरसात करके सभी को अनदेखा कैसे चलती रहती हो अनवरत यह जानकर भी कि अभी रास्ता है तवील छोड़ कर कई मील के पत्थर और पड़ाव कैसे बढ़ जाती हो, निकल जाती हो बन के बिंदास मुझे वह मंत्र बता दो मुझे भी चलना है तेरी ही तरह यह जाने बिना कि कहां जाना है हां बस चलना है, बिना जाने कि कहां जाना है . ( उमा त्रिलोक )