यह ज़रूरी तो नहीं-उमा त्रिलोक Sep12 यह ज़रूरी तो नहीं गुफ्तगू हो मुलाकातें हों, बातें हों यह ज़रूरी तो नहीं दो किनारे बन चलते रहें; और डोलता रहे मौन हमारा बस इतना ही बहुत है एक खूबसूरत नज़्म बन मुस्काना, हंसना, खिलखिलाना यह ज़रूरी तो नहीं एक बुक मार्क की तरह उस की किताब में बने रहना ही बहुत है तुम उसका, और वह तुम्हारा ख्वाब बने साथ रहने, बसने की आस बने यह ज़रूरी तो नहीं बस उसके ख्वाबों में तुम्हारा होना ही बहुत है कोई बंदिशें, वादे या इकरार हों गिले, शिकवे या शिकायत हो यह ज़रूरी तो नहीं इक दूजे के लिए होना, बस होना ही बहुत है . ( उमा त्रिलोक )