आज से 30 साल बाद-आनंद सरिता Sep28 सुनो …! हम मिलेंगे एक बार जरूर बुढापे में लकड़ी लेकर आऊंगी मैं तुमसे मिलने… जानते हो क्यों?? क्योंकि उस समय कोई बंदिशें नहीं होंगी ना तुम्हारे ऊपर ,ना मेरे ऊपर वो दौर भी कैसा होगा । कितना सुन्दर कितना खुशहाल,, ना किसी का डर होगा, ना कोई दायरे …. तुम आओगे ना मुझसे मिलने ? आँखों पर मोटा-सा चश्मा होगा उस चश्मे से निहरूंगी तुम्हारे आंखो के शरारत को…… तुम रख देना सर अपना हौले से मेरे कंधे पर मैं संवार दूंगी तुम्हारी जुल्फो को अपने झुर्री पड़े…कोमल हाथों से..! मैं छूना नहीं चाहती तुम्हें…. बस हवाओं की हर पुरवाई में महसूस करना चाहती हूँ बेहद करीब से… तुम्हारे सुवास में अपने अहसास को ख़ुदा की इबादत की तरह बोलो ना !! आओगे ना तुम मुझसे मिलने…? . ( आनंद सरिता )