Tag Archives: हिन्दी कविता

मेरे वक्त का एक अहम सवाल-गीत चतुर्वेदी

मैं बुदबुदाता हूँ
और मेरी आवाज नहीं सुनी जाती
मैं फिर कहता हूँ कुछ शब्द
और इन्तजार करता हूँ
कुछ आवाजें फिर निकलती हैं मेरे कंठ से
वे मेरी ओर देखते हैं और
वापस काम में लग जाते हैं
मैं बोलते समय अपने हाथ भे हिलाता हूँ
खट-खट जमीन पर ठोंकता हूँ अपने जूते
चुटकी बजाता हूँ, ताली पीटता हूँ, एक सीटी भी मार देता हूँ
तीन शब्द में होना था काम
तीन लाख शब्द जाया हो गए

क्या मुझे जोर से चिल्लाना चाहिए ?

( गीत चतुर्वेदी )

कब तुम बात करोगे-चिनु मोदी

हम से कब तुम बात करोगे
खामोशी बरखास्त करोगे ? हम से…

बेसब्री से इंतेझार है
गुलशन गुलशन यार यार है
सन्नाटे की सोट सोय है
यार, सितारे बेशुमार है-

ऐसे में भी रसम निभा कर
तन्हाई तहेनात करोगे ? हम से…

यादों का सैलाब नहीं है
जीने का असबाब नहीं है,
तेरी गली से गुजरा लेकिन
परछांई बेताब नहीं है,
तेरा मेरा रिश्ता बुढ्ढा
कब तक तुम बरदास्त करोगे ?हम से…

एक शिकस्ता दिल को लेकर
भटक रहा है तन्हा तन्हा
ऊंची ऊंची दीवारे है
मैं नाटा और नन्हा नन्हा;
हम दोनों का खेल पुराना
फिर तुम मुज से म्हात करोगे ? हम से…

दस्तक देने की मत सोचो
द्वार ढकेलो, अंदर आओ,
आंखे कब की खूली खूली है
डाका डालो, नींद चुराओ-
दु:ख देने की चाहत अब भी ?
सांसो की खैरात करोगे ? हम से…

( चिनु मोदी )

एक ही राह-इमरोज़

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सामने कई राहें दिख रही थी
मगर कोई राह ऐसी न थी
जिसके साथ मेरा अपना आप चल सके
सोचता कोई हो मंजिल जैसी राह…

वह मिली तो जैसे
एक ज्म्मीद मिली जिन्दगी की
यह मिलन चल पडा
हम अकसर मिलने लगे और मिलकर चलने लगे
चुपचाप कुछ कहते, कुछ सुनते
चलते-चलते कभी-कभी
एक-दूसरे को देख भी लेते

एक दिन चलते हुए
उसने अपने हाथों की उंगलियां
मेरे हाथों की उंगलियों में मिला कर
मेरी तरफ ईस तरह देखा
जैसे जिन्दगी एक बुझारत पूछ रही हो
कि बता तेरी उंगलियां कौन-सी है
मैंने उसकी तरफ देखा
और नजर से ही उससे कहा…
सारी उंगलियां तेरी भी सारी उंगलियां मेरी भी

एक तारीखी इमारत के
बगीचे में चलते हुए
मेरा हाथ पकड कर कुछ ऐसे देखा
जैसे पूछ रही हो इस तरह मेरे साथ
तू कहां तक चल सकता है ?
मैंने कितनी ही देर
उसका हाथ अपने हाथ में दबाए रखा
जैसे हथेलियों के रास्ते जिन्दगी से कह रहा होऊं
जहां तक तुम सोच सको-

कितने ही बरस बीत गए इसी तरह चलते हुए
एक-दूसरे का साथ देते हुए साथ लेते हुए
इस राह पर
इस मंजिल जैसी राह पर…

( इमरोज़ )

बोलते नयन-नक्श वाली-ईमरोज

कल रात सपने में
एक औरत देखी
जिसे मैंने पहले कभी नहीं देखा था
पर मिलते ही लगा
कि ईस बोलते नयन-नक्श वाली औरत को
कहीं देखा भी हुआ है
हो न हो यह वही है
जो मेरी कल्पनाओं के बाग में
अक्सर आ कर
फूलों से खेलती दिखती रही
जहां मिले थे
वह जगह बहुत नई थी-
मेरे लिए
पर बहुत हरी भरी
फूलों से टहलते हुए
पता ही नहीं लगा
कब उसका घर आ गया

उसका घर भी
बोलते नयन-नक्श वाली की तरह
बोल रहा था-
गिनती की सिर्फ जरुरी चीजें
घर की सजावट भी थीं
और जरुरत भी
फालतू चीजें घर में कहीं भी
न होने के कारण
घर खुला-खुला लग रहा था-
खूबसूरत, दिलचस्प और सादा
अपनी तरफ का एक ही

बिल्कुल अपनी घर वाली जैसा
जहां सादगी खूबसूरती को बढा रही थी
और खूबसूरती सादगी को
अमीरी फकीरी दोनों उसके स्वभाव में दिख रही हैं
वह कविता लिखती है
लिखकर हवा के हवाले कर देती है

रात बीत गई है
पर सपना नहीं बीता
वह अभी भी बोलते नतन-नक्श वाली के साथ
कहीं चल रहा है…

( ईमरोज )

प्रचार-इमरोज़

मैं आपका कल का
प्रचार सुनकर आई हूं
कल आप ने कहा था
कि आपका ग्रंथ औरत की इज्जत करता है
पर आप के ग्रंथ को मानने वाले
हर रोज अपनी औरतों के साथ
हर तरह की बदतमीजियां किये जा रहे हैं
प्रचार और असलियत में इतना फासला ?
जिन्दगी ने प्रचारक के पास बैठकर
उसे कहा

प्रचारक का जिन्दगी के साथ
इस तरह का वास्ता नहीं पडा होगा
वह चुपचाप सुनता भी रहा और चुप भी रहा…

जिन्दगी ने फिर पूछा
अपने ग्रंथ में देख कर बताइये
कि इस में ये वाक्य कहीं है
कि औरत हमारी ईज्जत है…

प्रचारक ग्रंथ पर झुक कर
घंटो ग्रंथ को देखता रहा
पर वह वाक्य नहीं मिला उसे…
प्रचारक को चुप सा देख कर
जिन्दगी वहां से उठ आई…

औरत हमारी इज्जत है
ये वाक्य जिन्दगी के लिए
जिन्दगी में जरुरी है
किसी ग्रंथ के लिए नहीं…
( इमरोज़ )

मैं रहूं या ना रहूं-रश्मी विराज

मैं रहूं या ना रहूं
तुम मुज में कहीं बाकी रहेना…

मुजे नींद आये जो आखिरी
तुम ख्वाबों में आते रहेना
बस इतना है तुमसे कहेना…
मैं रहूं या ना रहूं
तुम मुज में कहीं बाकी रहेना…

किसी रोज बारिश जो आये
समज लेना बूंदो में मैं हूं
सुबह धूप तुमको सताये
समज लेना किरनों में मैं हूं
कुछ कहुं या ना कहुं
तुम मुजको सदा सुनते रहेना
बस इतना है तुमसे कहेना…

हवाओं में लिपटा हुआ मैं
गुजर जाउंगा तुमको छु के
अगर मन हो तो रोक लेना
ठहर जाउंगा इन लबों पे
मैं दिखुं या ना दिखुं
तुम मुजको महसूस करना
बस इतना है तुमसे कहेना…

मैं रहूं या ना रहूं
तुम मुज में कहीं बाकी रहेना

Video Album : Main Rahoo Ya Na Rahoo
Singer : Armaan Malik
Lyrics : Rashmi Virag
Music Label : T Series

દરેક પ્રેમ-ગગન ગિલ, અનુ. નલિની માડગાંવકર

દરેક પ્રેમ તમારે ઘરને ઉંબરે આવીને
સહુ પ્રથમ પૂછે છે કે
તું મારે ખાતર બારીમાંથી નીચે કૂદી શકીશ ?
પોતાની છાતી ચીરી શકીશ ?

દરેક પ્રેમ આમ જ પૂછે છે કે
તું તારા નાજુક બાહુથી
મારી જોડે ઊડી શકીશ ?
પ્રેમ તમારા ઘરને ઉંબરે આવતો હોય છે
ઉતાવળે પાછો ન ફરવા માટે
એને જવું હોય છે
એકાદ પર્વત કે ખીણની દિશામાં
સાગર કે નદીની દિશામાં
એ પૂર્વયોજના વગર
તમારા ઘરની દિશામાં આગળ વધે છે.
અને જાણવા ઈચ્છે છે કે
તમે એની સાથે ડૂબવા તૈયાર છો કે નહીં ?
પ્રેમ તમને સ્વેચ્છાએ મરવાની
પૂરેપૂરી સંમતિ આપે છે.

( ગગન ગિલ, અનુ. નલિની માડગાંવકર )

इन्तजार-ईमरोझ

एक खुदाई से
एक दीवार पर ये लिखा मिला
मैं एक कविता अकेली खडी
समय को कह रही हूं
कि अपने वजूद से मैं अपने आपको
जीने के लिए
एक जिन्दगी का
इन्तजार कर रही हूं –
सदियों से…

लिखने वाला तो मुझे लिख कर
भूल ही गया है
कि उसे मुझे जीना भी है
शायद ये उस के वजूद में ही ना हो

ये लेखन अब बहुत मद्धम
हो चूका है
पर कविता का इन्तजार और उसकी हसरत
वैसी की वैसी है –
अब भी गहरी की गहरी…

( ईमरोझ )

पेड-ईमरोझ

कल तक
जिन्दगी के पास एक पेड था
जिन्दा पेड
फूलों फलों और
महक से भरा…

और आज
जिन्दगी के पास
सिर्फ जिक्र है –
पर है जिन्दा जिक्र
उस पेड का…

पेड जो
अब बीज बन गया
और बीज
हवाओं के साथ
मिल कर
उड गया है
पता नहीं
किस धरती की
तलाश में…

( ईमरोझ )

रखजा-हनीफ साहिल

भूली बिसरी कहानीयां रखजा,
कुछ तो अपनी निशानीयां रखजा.

फिर न रक्से बहार याद आए,
झर्द शाखों पे तितलीयां रखजा.

कच्ची नींदों के ख्वाब की ताबीर,
आज पलकों के दरमियां रखजा.

हिज्र की ईन सियाह रातों में,
चांदनी की तजल्लीयां रखजा.

मेरे लफझों को शादमानी दे,
फिर गजल में रवानीयां रखजा.

तेरी मेरी शरारतें शिकवे,
अपनी बातें पुरानीयां रखजा.

आज दरिया भी है अकेला हनीफ,
ईस पे यादों की कश्तीयां रखजा.

( हनीफ साहिल )