खंडहर बचे हुए हैं ईमारत नहीं रही
अच्छा हुआ कि सर पे कोई छत नहीं रही
हमने तमाम उम्र अकेले सफर किया
हम पर किसी खुदा की ईनायत नहीं रही
मेरे चमन में कोई नशेमन नहीं रहा
या युं कहो कि बर्क की दहशत नहीं रही
हमको पता नहीं था हमें अब पता चला
ईस मुल्क में हमारी हकूमत नहीं रही
कुछ दोस्तों से वैसे मरासिम नहीं रही
कुछ दुश्मनों से वैसी अदावत नहीं रही
हिम्मत से सच कहो तो बूरा मानते हैं लोग
रो रो के बात कहने की आदत नहीं रही
( दुष्यंतकुमार )
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