सोचा नहीं अच्छा-बुरा, देखा-सुना कुछ भी नहीं,
माँगा खुदा से रात-दिन, तेरे सिवा कुछ भी नहीं.
सोचा तुझे, देखा तुझे, चाहा तुझे, पूजा तुझे,
मेरी वफा मेरी खता, तेरी खता कुछ भी नहीं.
जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाये रात भर,
भेजा वही कागज उसे, हमने लिखा कुछ भी नहीं.
ईक शाम की दहलीज पर बैठे रहे वो देर तक,
आँखो से की बातें बहुत, मुँह से कहा कुछ भी नहीं.
दो-चार दिन की बात है, दिल खाक में सो जायेगा,
जब आग पर कागज रखा, बाकी बचा कुछ भी नहीं.
अहसास की खुशबू कहाँ, आवाज के जुगनू कहाँ,
खामोश यादों के सिवा, घर में रहा कुछ भी नहीं.
( बशीर बद्र )
very veyr good among the best
THANKS
very very good
श्रेष्ठ संयोजन !!! स्तरीय संकलन !! सन्कलन्कर्त्री धन्य है !!
– आर डी सक्सेना
I REALY ENJOYED YOUR POEM.
RAMESH MEHTA
MUMBAI. INDIA.