मुम्किन है सफर हो आसाँ अब साथ भी चल कर देखें
कुछ तुम भी बदल कर देखो, कुछ हम भी बदल कर देखें
आँखों में कोई चेहरा हो, हर गाम पे ईक पहरा हो !
जंगल से चलें बस्ती में दुनिया को सँभल कर देखें
सूरज की तपिश भी देखी, शोलों की कशिश भी देखी
अबके जो घटायें छायें, बरसात में जल कर देखें
दो-चार कदम हर रस्ता पहले की तरह लगता है
शायद कोई मंजर बदले कुछ दूर तो चल कर देखें
अब वक्त बचा है कितना, जो और लडें दुनिया से
दुनिया की नसीहत पर भी थोडा-सा अमल कर देखें
( निदा फाजली )
[ तपिश=गर्मी, कशिश=आकर्षण ]