कई साल पहले
किसी ने अगर कोई रास्ता चुना हो
और उस रास्ते पर
अँधेरे उजालों से लडता रहा हो
कभी सख्त चट्टान सा जम गया हो
कभी आँधियों में घिरे पेड जैसा…उखडता रहा हो
मगर फिर भी आगे ही बढता रहा हो
अगर चलते-चलते कभी बीच रस्ते में
उस राहरौ में ये ईहसास जागे
मेरा रास्ता ये नहीं दूसरा है
तो क्या हो-!
जो आगे बढे अब
अँधेरों को अपना मुकद्दर बनाये
अगर पीछे लौटे तो
साँसों की पूँजी जो आधी बची है उसे भी गँवाये
दुआओं का तालिब हूँ
फुर्सत मिले तो
मिरे हक में तुम भी दुआ करती रहना-
( निदा फाजली )
[राहरौ=पथिक, ईहसास=संवेदना, दुआओं=प्रार्थनाओं, तालिब=अभिलाषी]
સરસ રચના
Aarth purna sunder kavita.
bahot sundar kavita he,,,,
aur bheja te rehana.
Very Very Deep Thought
good
i like very much