जिस्म की जुस्तजू – निदा फाजली

सुनो तुम !

ये मेरा तुम्हारा

जो रिश्ता है

ईक रास्ता है

मैं तुमसे गुजर कर ही

तुम तक पहुँचने की रफ्तार हूँ

मेरा आगाज तुम

मेरा अंजाम तुम

तुम्हें देखकर मैं तुम्हें सोचता हूँ

तुम्हें पा के ही

मैं तुम्हें खोजता हूँ

तुम अपने बदन के समंदर में

सदीयों से पोशीदा

ईक ख्वाब हो

और मैं !!

खून की तेज गर्दिश में बनती हुई आँख हूँ

आँख और ख्वाब के दर्मियाँ

रोशनी तितलियाँ

नींद, बेदारियाँ

जिस्म से जिस्म तक

हर मिलन ईक सफर

हर सफर !

ख्वाब की आरजू

जिस्म की जूस्तजू !

.

( निदा फाजली )

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2 replies on “जिस्म की जुस्तजू – निदा फाजली”

  1. बोहोत खूब…मैं तुमसे गुज़र कर ही तुम तक पहुँचाने की रफ़्तार हूँ…क्या कहने?

  2. बोहोत खूब…मैं तुमसे गुज़र कर ही तुम तक पहुँचाने की रफ़्तार हूँ…क्या कहने?

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