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पिया, खोलो किवाड,
पिया, खोलो किवाड,
कोयल की गूंजी पुकारें.
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बगिया में मरमर,
दुनिया में जगहर,
उतरी किरन की कतारें.
पिया, खोलो किवाड,
पिया, खोलो किवाड,
कोयल की गूंजी पुकारें.
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कलियों में गुन-गुन,
गलियों में रुन-झुन,
अम्बर से गाती बहारें.
पिया, खोलो किवाड,
पिया, खोलो किवाड,
कोयल की गूंजी पुकारें.
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पतझर को भूली,
हर डाली फूली,
बीती को हम भी बिसारें.
पिया, खोलो किवाड,
पिया, खोलो किवाड,
कोयल की गूंजी पुकारें.
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गूंगी थीं घडियां,
गीतों की कडियां,
वीणा को फिर झनकारें.
पिया, खोलो किवाड,
पिया, खोलो किवाड,
कोयल की गूंजी पुकारें.
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माना कि दुख है,
बिधना विमुख है,
आओ उसे ललकारें.
पिया, खोलो किवाड,
पिया, खोलो किवाड,
कोयल की गूंजी पुकारें.
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( हरिवंशराय बच्चन )
जब बंध ही नहीं किए दरवाज़े तो किवाड़ क्या खोले?
जब बंध ही नहीं किए दरवाज़े तो किवाड़ क्या खोले?
હરિવંશરાય રાયની આ સુંદર રચનામાં ખૂબજ સુંદર માર્મિક વાત કહી જાય છે.. પિયાને ક્યા કબાટના દરવાજા ખોલવાની વાત કહે છે ..! જે સમજવા જેવું છે…!
હરિવંશરાય રાયની આ સુંદર રચનામાં ખૂબજ સુંદર માર્મિક વાત કહી જાય છે.. પિયાને ક્યા કબાટના દરવાજા ખોલવાની વાત કહે છે ..! જે સમજવા જેવું છે…!