रात आधी बीती होगी
थकी-हारी
नींद को मनाती आंखे
अचानक व्याकुल हो उठी
कहीं से आवाज आई-
“अरे, अभी खटिया पर पडी हो!
उठो!बहुत दूर जाना है
आकाश गंगा को तैरकर जाना है”
मैं हैरान होकर बोली-
“मैं तैरना नहीं जानती
पर ले चलो,
तो आकाश गंगा में डूबना चाहूंगी”
एक खामोशी-हल्की हंसी
“नहीं डूबना नहीं, तैरना है…
मैं हूं…ना…”
और फिर जहां तक कान पहुंचते थे
एक बांसुरी की आवाज आती रही…
( अमृता प्रीतम )