कहीं बीत न जाए वसंत-उमा त्रिलोक Sep24 उड़ते परिंदे के हाथ भेज देना खत लिख देना वही सब कुछ जो नहीं कह पाए थे उस दिन अपनी नम आंखों से भेज देना घोल कर नदी की कल कल में वही गीत जो गाया था तुम ने उसी नदी के किनारे मुझे मनाने को दोहराना वह भी जो कहते कहते रुक गए थे उस दिन जब किसी ने पूछ लिया था एक अटपटा सा सवाल हम दोनों के बारे में भला क्या कह कर, समझाया था उसे, तुमने टटोलना जेबों कोअपनी पायोगे कुछ पड़े हुए सवाल जो पूछे थे मैंने बहुत पहले, और जो रख लिए थे तुमने, यह कहकर कि बताऊंगा बाद मे लिख भेजना उन सबके जवाब मगर देखना कहीं बीत न जाए वसंत . ( उमा त्रिलोक )