एक ने बोला जोर से बोलो,दूजा बोला धीरे बोल,
फिर मुजको समझाने आया पूरा टोला धीरे बोल.
रात का सन्नाटा केहता है परी उतरने वाली है,
हो सकता है यहीं पे उतरे उडनखटोला धीरे बोल.
आंधी भी कुछ दूर हवा का भेस बदल कर बैठी है,
तू क्या जाने, किस ने पेहना किस का चोला धीरे बोल.
देख हवा का झोंका है या सचमुच कोई आया है,
देख किसीने दरवाजे का जिस्म टटोला धीरे बोल.
धीरे से केहता हुं धीरे बोल, मगर सुनता ही नहीं,
आखिर में भी चिल्लाया और जोर से बोला धीरे बोल.
देख खलील अब ईस बस्ती को और परेशां मत करना,
खो बैठेगा यहीं पे तेरा झंडा झोला धीरे बोल.
( खलील धनतेजवी )