यही है क्या प्यार-नन्दकिशोर आचार्य

कितना असहाय था मैं

अन्देशों से घिरा, काँपता हुआ प्रतिपल

जब सब कुछ सुरक्षित था

और हवाएँ हर तरह अनुकुल.

अब सभी कुछ घनघोर झँझावात में है-

मैं कितना बेफिक्र !

यही है क्या प्यार:

समुद्री तूफानों के बीच

लहरों पर उछलती

एक टूटी नाव पर

बेफिक्र करती हुई

स्मृति यह?

 

( नन्दकिशोर आचार्य )

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