एक अनकही कहानी – दीपक भास्कर जोशी

मैं

जब भी संवेदन भार

से

उसके

कुछ और

करीब जाने के लिए

अपने

कदम बढाता हूँ,

तब

एक बिल्ली की

सधी उछाल की तरह

अपने प्रेमी के साथ गुजारी

चांद रातों की

कहानी सुनाने लगती है !

मानो मेरे बढते हुए कदम रोकना चाह रही हो !

तब मैं

मेरी कविताओं की डायरी

ताल के पानी पर

तैरते चांद के

प्रतिबिंब को

निशाना बना कर

फेंक देता हूँ

एक धीमी सी

डुबुक की आवाज होती है

और

कुछ नन्हे से पानी के बुलबुले

सतह पर आकर बिखर जाते है

सतह पर तैरते

चांद का प्रतिबिंब

बिखर जाता है……….!

मैं रुके हुए फैसले की तरह ताकता

रह जाता हूँ

बिखरे चांद के प्रतिबिंब

की ओर !

जब आखरी पानी का बुलबुला

सतह पर

आकर मिट जाता है

तब मैं अपने कदम

मोड लेता हूँ

उस दिशा में

जहाँ से मैं चला था.

 .

( दीपक भास्कर जोशी )

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