तापमय दिन में सदा जगती रही है,
रात भी जिसके लिए तपती रही है,
प्राण, उसकी पीर का अनुमान कर लो;
आज आओ चाँदनी में स्नान कर लो.
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चाँद से उन्माद टूटा पड रहा है,
लो, खुशी का गीत फूटा पड रहा है,
प्राण, तुम भी एक सुख की तान भर लो;
आज आओ चाँदनी में स्नान कर लो.
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धार अमृत की गगन से आ रही है,
प्यार की छाती उमडती जा रही है,
आज, लो, मादक सुधा का पान कर लो;
आज आओ चाँदनी में स्नान कर लो.
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अब तुम्हें डर-लाज किससे लग रही है,
आँखे केवल प्यार की अब जग रही है,
मैं मनाना जानता हूँ, मान कर लो;
आज आओ चाँदनी में स्नान कर लो.
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( हरिवंशराय बच्चन )
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( हरिवंशराय बच्चन )