फिर उगना-डॉ. पार्वती तिर्की

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झारखंड की आदिवासी बेटी डॉ. पार्वती तिर्की ने रचा साहित्य का इतिहास!

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झारखंड के गुमला ज़िले से आने वाली डॉ. पार्वती तिर्की को उनके पहले ही कविता संग्रह ‘फिर उगना’ के लिए मिला है साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार 2025 — यह सिर्फ एक पुरस्कार नहीं, बल्कि उस आवाज़ का सम्मान है जो आज भी जंगलों, गांवों, लोकगीतों और मिट्टी से जुड़ी हुई है।

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उनकी कविताओं में आदिवासी संस्कृति का संघर्ष, प्रकृति के साथ तादात्म्य, और आधुनिक जीवन की हलचल के बीच लोक जीवन की जिजीविषा को बेहद सहज, सरल भाषा में सामने लाया गया है।

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गुमला के एक नवोदय विद्यालय से पढ़ाई शुरू कर उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में स्नातक और परास्नातक की पढ़ाई की। फिर वहीं से उन्होंने आदिवासी समुदाय की संस्कृति और गीतों पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। वे आज रांची विश्वविद्यालय के राम लखन सिंह यादव कॉलेज में सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं।

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उनका पहला कविता-संग्रह ‘फिर उगना’ वर्ष 2023 में राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित हुआ। इस संग्रह को हिन्दी की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं और समीक्षकों ने नई आवाज़ और ज़रूरी हस्तक्षेप माना है।

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पार्वती कहती हैं —

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“मैंने कविताओं के ज़रिए संवाद की कोशिश की है। विविध जनसंस्कृतियों के बीच समझ और विश्वास बने — यही मेरी कोशिश रही है। इस सम्मान से मेरा आत्मविश्वास बढ़ा है।”

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यह सम्मान न सिर्फ पार्वती का है, बल्कि उन सभी युवाओं का है जो ग्रामीण या आदिवासी पृष्ठभूमि से आते हुए भी, अपनी भाषा, अपनी मिट्टी और अपनी संस्कृति से जुड़े रहकर नए साहित्य की दुनिया बना रहे हैं।

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राजकमल प्रकाशन के अध्यक्ष अशोक महेश्वरी ने इस उपलब्धि पर कहा —

“पार्वती का लेखन दिखाता है कि परंपरा और आधुनिकता साथ-साथ जी सकती हैं। हिन्दी कविता का भविष्य अब सिर्फ शहरों में नहीं, गांवों और लोक जीवन में भी आकार ले रहा है।”

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‘फिर उगना’ — एक नई भाषा, नई संवेदना और नई उम्मीद का नाम है।

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डॉ. पार्वती तिर्की को बहोत बहोत बधाई ।

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