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  • मैं फटी जींस नहीं पहनती, लेकिन प्रगतिशील हूँ-पंकज प्रसून

    . मैं फटी जींस नहीं पहनती।क्योंकि मेरी प्रगतिकपड़ों के छेदों से नहीं मापी जाती।मेरी आज़ादीघुटनों से झांकती खाल में नहीं है।वो तो मेरी रीढ़ की उस सीध में हैजो भीड़ की तालियों पर नहीं डगमगाती। . मेरा नारीत्वकपड़ों के चिथड़ों … Continue reading →

  • आषाढ़, तुमने ये क्या किया ?-भानु प्रताप सिंह

    आषाढ़, तुमने ये क्या किया? अमलतास के बदन से पीली मोतियां छीन लीं! . ज़मीन पर बिखरी बारिस की बूंदों में लिपटी धूल में सनी ये पीली मोतियां कितनी बेबस दिख रही हैं . मेरे अमलतास ! तुम अपने मौसम … Continue reading →

  • મને ક્યાં આવડે છે હેં ભૂરા ?-દીપક ત્રિવેદી

    નિસરણીથી ઊતરવાનું મને ક્યાં આવડે છે હેં ભૂરા ?તણખલાથી જ તરવાનું મને ક્યાં આવડે છે હેં ભૂરા ? . ખૂલી આંખે મેં જોયું’તું સપન એ તું જ પરગટ કર હવે,બધાં સપનાંઓ લખવાનું મને ક્યાં આવડે છે હેં ભૂરા ? . … Continue reading →

  • हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था-विनोदकुमार शुक्ल

    हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था व्यक्ति को मैं नहीं जानता था . हताशा को जानता था ईसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया . मैंने हाथ बढाया मेरा हाथ पकडकर वह खडा हुआ . मुझे वह नहीं जानता … Continue reading →

  • तुम आओ तो जरा बता देना⁣-हेमन्त परिहार

    तुम आओ तो जरा बता देना⁣ मैं थोड़ा घर अपना सजा दूंगा⁣ बहुत काँटे चुभते हैं यूँ तो⁣ तन्हाई की इस राह पर मुझे⁣ तुम आओ तो जरा बता देना⁣ मैं कुछ फूल प्रेम के बिछा दूंगा⁣ ⁣. बायीं तरफ … Continue reading →

  • हर तरफ़ तेज़ आँधियाँ रखना-ध्रुव गुप्त

    हर तरफ़ तेज़ आँधियाँ रखनाबीच में मेरा आशियाँ रखना . धूप छत पर हो, हवा कमरे मेंलॉन में शोख़ तितलियाँ रखना . चाँद बरसे तसल्लियों की तरहघर में दो-चार खिड़कियाँ रखना . अपनी दुनिया है दिल-फ़रेब बहुतएक दिल को कहाँ … Continue reading →

  • એમણે તમને કાળું ઘેટું કહી બોલાવ્યા – અજ્ઞાત (અનુ. બકુલા ઘાસવાલા)

    They called you the black sheep. Not because you were wrong — but because you were different. . While the herd followed the path without question, you paused. Looked up. Listened to the wind. And whispered, “There must be another … Continue reading →

  • गीत गाते हुए लोग-पार्वती तिर्की

    गीत गाते हुए लोग कभी भीड़ का हिस्सा नहीं हुए धर्म की ध्वजा उठाए लोगों ने जब देखा गीत गाते लोगों को वे खोजने लगे उनका धर्म उनकी ध्वजा अपनी खोज में नाकाम होकर उन्होंने उन लोगों को जंगली कहा वे … Continue reading →

  • फिर उगना-डॉ. पार्वती तिर्की

      . झारखंड की आदिवासी बेटी डॉ. पार्वती तिर्की ने रचा साहित्य का इतिहास! . झारखंड के गुमला ज़िले से आने वाली डॉ. पार्वती तिर्की को उनके पहले ही कविता संग्रह ‘फिर उगना’ के लिए मिला है साहित्य अकादमी युवा … Continue reading →

  • इक जोड़ा कश्मीर गया था-मन मीत

      इक जोड़ा कश्मीर गया था उसमें से बस पत्नी लौटी ! . घूम रहे थे घाटी घाटी तैर रहे थे झील में पंछी हाथ में पंछी आंख में पंछी आकाशों के नील में पंछी . नाव चली थी मद्धिम … Continue reading →

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