मैं ना कहूं तो क्या तू मेरी बात ना जाने
हर बात कहकर ही क्या कोई जाने
मैं ना कहूं तो क्या तू मेरी बात ना जाने
.
बहुत सी बातें कही न जायें
बहुत सी कहनी न आयें
बहुत सी कहने लायक न पायें
मैं ना कहूं तो क्या तू मेरी बात ना जाने
.
यों तो बहुत सी वातों में
कुछ बात होती नहीं
किंतु कभी कुछ नहीं में बहुत हो जाये
मैं ना कहूं तो क्या तू मेरी बात ना जाने
.
मुख से चाहे मैं और कुछ कह जाऊं
फिर भी तू भीतर की असली जाने
तो मैं जानूं
मैं ना कहूं तो क्या तू मेरी बात ना जाने
.
बात तो वह हुई
जो मैं न जानूं फिर भी तू जाने
मुझसे ज्यादा मुझसे आगे
तू मेरी जाने
तभी तू मुझसे मेरा अधिक माना जाये
मैं ना कहूं तो क्या तू मेरी बात ना जाने
.
( नन्दिनी मेहता )
आप जानती है की हम बिना कुछ सुने और आपके बिना कुछ कहे ही सब कुछ जानते ही है…आपको कुछ कहने के ज़रूरत नहीं है.
आप जानती है की हम बिना कुछ सुने और आपके बिना कुछ कहे ही सब कुछ जानते ही है…आपको कुछ कहने के ज़रूरत नहीं है.