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जमीं से पहले – राजेश रेड्डी

जमीं से पहले खुले आसमान से पहले

न जाने क्या था यहाँ इस जहान से पहले

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हमें भी रोज ही मरना पडता है मौत आने तक

हमें भी जिन्दगी देनी है जान से पहले

 .

खयाल आते ही मंजिल से अपनी दूरी का

मैं थक सा जाता हूँ अक्सर थकान से पहले

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जो मेरे दिल में है उसके भी दिल में है, लेकिन

वो चाहता है कहूँ मैं जुबान से पहले

 .

हमें पता है हमारा जो हश्र होना है

नतीजा जानते हैं इम्तिहान से पहले

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( राजेश रेड्डी )

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