जमीं से पहले – राजेश रेड्डी
जमीं से पहले खुले आसमान से पहले
न जाने क्या था यहाँ इस जहान से पहले
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हमें भी रोज ही मरना पडता है मौत आने तक
हमें भी जिन्दगी देनी है जान से पहले
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खयाल आते ही मंजिल से अपनी दूरी का
मैं थक सा जाता हूँ अक्सर थकान से पहले
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जो मेरे दिल में है उसके भी दिल में है, लेकिन
वो चाहता है कहूँ मैं जुबान से पहले
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हमें पता है हमारा जो हश्र होना है
नतीजा जानते हैं इम्तिहान से पहले
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( राजेश रेड्डी )
आफरीन…
आफरीन…
आफरीन…