बचपन में – दीपक भास्कर जोशी

Moon

.

बचपन में घर के पीछे की

अमराई में

एक छोटी सी नदी बहती थी

पूरनमासी के दिन

चांद उतर आता

था नदी के

आखरी मोड पर !

बचपन के नन्हें हाँथों

से मैं एक बार

चांदी की थाली सा चांद

नदी की परत से

उठा लाया था

और चिपका दिया था

कोने वाली दीवार पर !!

दिन में कहीं भी उसका

अस्तित्व

नहीं रहता था

लेकिन रात को

चमकता रहता

था

दीवार पर !

दादी की कही

चरखे वाली बूढी, खरगोश

सब दिखाई देते थे

नीलम परी के साथ

बचपन छूटा

गाँव की दीवार छूटी

नदी का मोड भी !

अब चांदी की थाली सा चांद

शहर की घनी बस्ती के

माथे पर दिखाई देता है

घर की दीवार पर नहीं दोस्त !

क्योंकि

घर के पीछे

न अमराई है

न उसके पीछे

आखरी मोड पर

मुडती नदी !

 .

( दीपक भास्कर जोशी )

2 Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *