लम्हें लम्हें पर-चिनु मोदी
लम्हें लम्हें पर तुम्हारा नाम था
मैं सफर में इस तरह बदनाम था
जूस्तजू थी, जूस्तजू थी, जूस्तजू,
तैरती मछली का अब भी काम था
मौत को आवाज दे कर भी बुला,
अब शिकस्ता जिन्दगी का जाम था
बंद दरवाजे पर दस्तक रात-दिन
साँस का यह आखरी पैगाम था
मैंकदे मैं बैठकर पीते रहे
इस तरह ‘इर्शाद’ भी खैयाम था
( चिनु मोदी )